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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4848 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
[ त०] तब से वह त० तीरा गो० गौतम वा० वायुभूति अ० अनगार दो० दुसरा गो० गौतम अ० अभिभूति अ० अनगार की स० साथ जे० जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर जा० यावत् प० { पूजते ए० ऐसे व० बोले ज० यदि भं० भगवन् च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुर राजा म० महर्द्धिक ना०यावत् प० समर्थ वि०विकुर्वणा करने को वचलेन्द्र भं० भगवन् व वैरोचन व ० वैरोचनराजा के ० कितना म० महर्द्धिक ज० जैसे च० चमर का त० तैसे ब० बलेन्द्र का ने० जानना ० विशेष सा० अधिक के० से तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे दोच्चेणं गोयमेणं अंग्गिभूइणा अणगारेण सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे जात्र पज्जुवासमाणे एवं वयासी जइणं भंते चमरे असुरिंदे असुन या ए महिड्डीए जाव एवइयं च णं पभू विकुन्वित्तए । वलीणं भंते ! वइरोयनिंदे वइरोयणराया केमहिड्डीए जाब केवइयंचणं पभू विकुव्वित्तए ? गोयमा ! बलीणं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महिड्डीए जहा चमरस्स तहा बेलिस्सा
यन्त्रं
{ की पास गये और वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना कर ऐसा बोले. अहो भगवन् ! चमर नामक असुरेन्द्र इतना महर्दिक यावत् इतने वैक्रेयरूप करने को शक्तिवंत है तो बलि नामक वैरोचनेन्द्र कितना महर्द्धिक यावत् कितने वैक्रय करने को शक्तिवंत हैं ? अहो गौतन ! जैसा चमरेन्द्रका कहा वैसा ही बलि नामक वैरोचनेन्द्र का जानना. विशेष इतना कि यह देव देवियों से कुछ अधिक जम्बूद्वीप भरे, शेष सत्र पूर्वोक्त जैसे
+8+42 तीसरा शतक का पहिला उद्देशा +8+++
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