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________________ - सूत्र शब्दार्थ नो० नहीं स० श्रद्धा नो० नहीं प० प्रतीत हुवा नो० नहीं रो० रुचा उ० स्थान से उ० उठकर जे. | माणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे उट्ठाए उटेइ उट्टेइत्ता, जेणेव समणे भगवं महा वीरे तेणेव जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मम दोच्चे गोयमे अग्गिभई अणगारे एवमाइक्खड भासद पण्णवड परूवइ परूबइत्ता, एवं खल गोयमा! असरराया ए महिदीए जाव महाणभागे. सेणं तत्थ चोत्तीसाए भवणावास सयसहस्साणं तंचेव सव्वं अपरिसेसं भाणियव्वं जाव अग्गमहिसीओ वत्तव्वया ___सम्मत्ता ॥ से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमादि समणे भगवं महावीरे तच्चं गोयमं वाउभूई अणगारं एवं वयासी-जण्णं गोयमा ! तव दोचे गोयमे आग्गिभूई अणगारे अपने स्थान से उठकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास गये. वहां जाकर वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना कर ऐना बोले ओ भगान् ! मुझे दूसर गोतम गोत्रीय अग्निभू ते नामक अनगार ऐसा कहो हैं. यावत् प्ररूपते हैं कि चमर नामक असुरेन्द्र महर्दिक यावत् महानुभागवाले हैं. चौत्तीस लाख भुवन के मालीक हैं वगेरह अग्रमहिषियों तक सब संपूर्ण अधिकार कहा और पूछा कि अहो भगवन् ! यह किम Vतरह है ? फीर श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने वायुभूति अनगार को ऐसा कहा कि अहो गौतम! तुम को सरे गौतम योषीय अमिभूति अनगारने ऐसा कहा कि चमरेन्द्र महर्द्धिक यावत् महानुभागवाले हैं यावत् । 42 पंचांग विवाह पण्णसि ( भवगती) सूत्र 3484.8 तीसरा शतक का पहिला उद्देशा824310
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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