________________
शब्दार्थ
पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र - 48 पंचमांग विवाह
देवी के कितनी म. महर्दिक ज जैसे लो० लोकपाल अ० अवशेष स. वह ए०ऐसे भ० भगवन् ॥ ७॥ भ० भगवान् दो० दुसरा गो० गौतम स० श्रमण भ० भगवन्त ममहावीर को वं. वंदना कर न.10
असुररण्णो भंते अग्गमहिसीओ देवीओ के महिढीयाओ जाव केवइथंचणं पभू विउवित्तए? गोयमा !चमरस्सणं असुरिंदस्स असुररण्णो अग्गमहिसीओ देवीओमहिढीयाओ जाव महाणुभागाओ, ताओणं तत्थ साणं साणं भवणाणं, साणं साणं च सामाणिय साहस्सीणं,साणं साणं महत्तरियाणं,साणं साणं परिसाणं जाव महिढीयाओ अण्णं जहा लोगपालाणं, अपरिसेसं ॥सेवं भंते २ ! त्ति ॥७॥ भगवं दोच्चे गोयमे समणं भगवं महावीर
वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसइत्ता जेणेव तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे तेणेव उवागसकती हैं ? अहो गौतम ! चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों महा ऋद्धिवाली यावत् महानुभागवाली हैं. वे अपने २ भुवन, अपने २ सामानिक देव, अपनी २ महत्तरिक देवियों, अपनी २ परिषदा की ऋद्धिवाली हैं वगैरह लोकपाल जैसे सब अधिकार कहना. इतना सुनकर गौतम गोत्रीय दूसरे गणधर : अग्निभूति बोले कि अहो भगवन् ! जो आप कहते हैं वह सत्य है. जैमा आपका कथन है वैसा ही वस्तुस्वरूप है ॥७॥ इतना कहकर, श्रीश्रमण भगवंतको वंदना नमस्कार करके अग्निभूतिने तीसरे गणधर गौतम गोत्रीय श्री.बायुभूति की पास आकर कहा कि अहो गौतम: चमर नामक अमुरेन्द्र की ऋद्धि।
*8048 तीसरा शतक का पहिला उद्देशा 8th
भावार्थ
श्री