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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ।
जसे सा० सामानिक त तैसे में जानना लो. लोकपाल त० तैसे न० विशेष सं० संख्यात दी द्वीप स० समुद्र भा० कहना १० बहुत अ० असुर कुमार से आ० आकीर्ण जा. यावत् वि०विकुर्वणा करेगें ॥६॥ ज. यदि च० चमर के अ० असुरेन्द्र अ० अमुर राजाके लो० लोकपालदेव २० महर्दिक अ० अग्रमहिषी , देवाए महिढीया जाव एवइयंचणं पभू विकुन्वित्तए । चमरस्सणं भंते ! असुरिंदस्स है असुररण्णो तावत्तीसया देवा केमहिढीया, वत्तीसया जहा सामाणिया तहा णेयव्वा॥
लोयपाला तहेव, नवरं संखेजा दीवसमुद्दा भाणियव्वा, बहुहिं असुरकुमारेहिं २ आइण्णे जाव विउव्विस्संतिवा॥ ६ ॥ जइणं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो
लोगपाला देवाए महिड्डीए जाब एवइयंचणं पभू विकुवित्तए, चमरस्सणं असुरिंदस्स यावत् महानुभागवाले वैसे ही इतने वैक्रेय करने की शक्तिवाले हैं तब चमरेन्द्र के प्रायत्रिंशक कितने महर्दिक यावत् कितने वैक्रेय करनेवाले हैं. अहो गौतम ! जैसे सामानिक का कहा वैसे ही प्रायशिक का जानना. और इसीतरह लोकपाल का जानना. मात्र इतना विशेष है की इसमें संख्याते द्वीप समुद्र लेना. वायत्रिंशक व लोकपाल संख्याते द्वीप समुद्र को असुर कुमार के देव व देवियों से व्याप्त करने को समर्थन हैं ॥ ६॥ अहो भगवन् ! जब चमर नामक असुरेन्द्र के लोकपाल इतने महर्द्धिक यावत् इतने वैक्रेय करने को शक्तिवंत हैं तब चमरेन्द्र की अग्रपहिषियों कितनी ऋदिवाली हैं और कितने रूप वैक्रेय बना
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी.*