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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
46- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
स्वतः के भ० भुवन सा० स्वतः के सा० सामानिकदेव सा स्वतः की अ० अग्रमहिषी जा० यावत् दि० दीव्य भो० भोग भोगवते वि० विचरते हैं ॥ ५ ॥ अ० असुरेन्द्र के ता० त्रायत्रिंशक देव ज० केवलकप्पं जंबूदी बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहिय आइण्णं वितिकिष्णं उवत्थड थडं फुडं अरगाढावगाढं करेंत्तए || अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवें तिरियमसंखेजे दीव समुद्दे बहूहिं असुर कुमारेहिं देवेहिं देवीहिय आइण्णे वितिकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अरगाढावगाढे करेन्तए, एसणं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो एगमेगस्स सामाणि देवस् अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, णोचवणं संपत्तीए, विकुव्विसुवा, विकुल्विंतिवा, विकुव्विसंतिवा ॥ ५ ॥ जइणं भंते! चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो सामाणिय संपूर्ण जम्बूद्वीप को व्याप्त, विशेष व्याप्त, आच्छादित, यावत् प्रगट करने को शक्तिवंत हैं वैसे ही तिच्छे असंख्यात द्वीप समुद्र को व्याप्त यावत् प्रगट करने को शक्तिवंत हैं. अहो गौतम ! चमरेन्द्र के सामानिक का { मात्र यह विषय कहा परंतु उन को इतनी संपत्ति नहीं होने से उनोंने अतीत कालमें इतने वैक्रेय किया नहीं। (वर्तमानमें करते नहीं हैं. और आगामिकमें करेंगे भी नहीं ॥२॥ अहो भगवन्! चमरेन्द्र के सामानिक इतने महार्द्धक)
* तीसरा शतक का पहिला उद्देशा -
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