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शब्दा
समर्थ वि०विकुर्वणा करने को च० चमरेन्द्र का अ. असुरेन्द्र अ० असुर राजा का सा. सापानिक दे० देव के. कितना म० महर्दिक जा. यावत् के० कितना प. समर्थ वि० विकुणा करने को गो. गौतम च. चमर के अ० अमुर गजा के सा. सागानिक देव म० महर्दिक जा. यावत् म. महानुभाग सा.
दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति, एवं महिड्डीया जाव एवइयंचणं पभू विकुवित्तए । से जहा नामए जुवइ जुवाणे हत्थेणं हत्थं गेण्हेजा, चक्करसवा नाभी अरया उत्तासिया एवामेव गोयमा ! चमरस्सवि असुरिंदरुस असुररण्णो एगमेगे सामाणिए देवे वेउब्विय समुग्धाएणं समोहणइ २ त्ता जाव दोच्चंपि वेउब्विय समुग्घा
एणं समोहणइ पभूणं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो एगमगे सामाणिए भावार्थ
अहो गौतम!चमर नामक असुरेन्द्र असुरराजा के सामानिकदेव चमरेन्द्र जैसे महाऋद्धिवंत यावत् महानुभाग वाले हैं. वे अपने २ भवन, सामानिक अग्रमहिषी वगैरह के दीव्य सुख भोगरते हुवे रहते हैं. और जिस प्रकार कामसे पीडित युवान पुरुष अपने हस्तसे युवती का हस्त ग्रहण करता है, अथवा जैसे चक्रकी मामी में
आरा निविड रहता है, वैसे ही चमर नामक असुरेन्द्र के सामानिक देव वैक्रेय समुद्घात करे. उस में से लनिस्सार बादर पुगलों को छोडकर सूक्ष्म पुद्गलों ग्रहण कर इच्छित रूप बनाने को दूसरा वैक्रेय रूप
बनावे. और अहो गौतम! वे एक २ सामानिक देव असुर कुमार के बहुत देवं देवियों के रूप बनाकर
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gr
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवमहायजी. पालाप्रसादजी *