SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 4 पंचमाङ्ग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 40 क० करे ए० यह गो० गौतम च०चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुर राजा का ए० ऐसारूप वि०विषय वि० विषय मात्र बु० कहा गो० नहीं सं० संपत्ति वि० विकुर्वणा की वि० विकुर्वणा करे त्रिविकुर्वणा करेगा ॥ ४ ॥ ज० यदि मं० भगवन् च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुरराजा ए० इतना म० महर्द्धिक जा०यावत् ए० ऐसे १० विकुव्विसुवा विकुव्वंतिवा, विकुव्विस्संतिवा ॥ ॥ जइणं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरराया ए महिड्डी जाव एवइयं चर्ण प्रभू विकुव्वित्तए चमरस्सणं भंते ! अमुरिंदर असुररण्णो सामाणियदेवा के माहिड्डीया जाव केवइयं चणं पभू विकुव्वित्तए ? गोयमा ! चमरस्त असुंररण्णो सामाणिय देवा महिड्डीया जाव महाणुभागा, तेणं तत्थ साणं साणं भवणाणं, साणं साणं सामाणियाणं, साणं साणं अग्गमहिसीणं, जाव और भी अड़ो गौतम ! बहुत असुर के देव व देवियों से तिच्छे असंख्याते द्वीप समुद्र को आकीर्ण करने को यावत् परस्पर संश्लेषणा युक्त बनाने को चमर नामक असुरेन्द्र समर्थ है. परंतु इतना रूप बनाने की संपत्ति नहीं है. मात्र चमर नामक असुरेन्द्र की इतना वैक्रेय रूप बनाने की शक्ति है. इतने रूप उनोंने अतीत काल में नहीं किये हैं, वर्तमान में नहीं करते हैं और आगामिक में नहीं करेंगे ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! जब चमर नामक असुरेन्द्र की इतनी ऋद्धि यावत् इतना वैक्रेय रूप करने की शक्ति है तो उनके सामानिक देवकी कितनी ऋद्धिब कितनी शक्ति है अर्थात् वे कितने वैक्रेय रूप करने को शक्तिवंत ++ तीसरा शतकका पहिला उद्देशा +4+ ३९९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy