SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ देव दे देवी से भा. व्याप्त वि० विशेष व्याप्त उ० आच्छादित सं• संथरित फु० प्रगट अ० मीले हुवेता 4. अवगाहे हुवे का करे अ० अथवा गो० गौतम प. समर्थ च०चमर अ० असुरेन्द्र अ०असुरराजा ति । तिळ अ० असंख्यात दी द्वीप स. समुद्र में ब. बहुत अ० असुर कुमार दे० देव दे. देवी से 'आ. व्याप्त वि० विशेष व्याप्त उ• आच्छादित सं० संथरित फु० प्रगट अ०मीले हुचे अ० अवगाहे हुवे जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारहिं देवेहिं देवीहिय आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थर्ड संथर्ड फुडं अरगाढावगाढं करेत्तए ॥ अदुत्तरंचणं गोयमा पभूणं चमरे असुरिंदे । असुरराया तिरियमसंखजे दीवसमुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहि देवीहिय आइण्णे वितिकिण्णे उवत्थडे संथड़े फुडे अरगाढावगाढे करेत्तए; एसणं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो अयमेथारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए । णो चेवणं संपत्तीए भावार्थ प्रकार के पदल ग्रहण करे, उन ग्रह हुने पदलों में से निःसार बादर पदलों को दर करके यथायोग्य) 1 सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करे, और वांच्छितरूप बनाने के लिये दूसरी वक्त बैफ्रेय समुद्घात करे. अहो गौतम ! वह चमर नामक असुरेन्द्र अपने रूप से विकुर्वणा करके संपूर्ण जम्बूद्वीप भरे और बहुत असु कुमार के देवता, देवियों व तथा प्रकारके अन्य भी इच्छित रूप से एक लक्ष योजन का जम्बूद्वीप व्याप्त 1होवे, विशेष व्याप्त होवे, क्रीडा से आच्छादित, परस्पर संथरित, प्रगट, व परस्पर संश्लेषणा युक्त होवे. -बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + मकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy