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शब्दार्थ * {बलवन्त म० महायशस्वी म० महानुभाग के कितना प० समर्थ त्रिविकुर्वणा करने को गो० गौतम च० चमर अ० असुरराजा म० महर्द्धिक जा यावत् म० महानुभाग से उन को त० तहां चो० चोत्तीस भ० भुवन स० लक्ष च० चौसठ सा०सामानिक स० सहस्र ता० तेत्तीस ता० त्रायत्रिंशक जा० यावत् वि० विचरते ए० ऐसे म० महर्द्धिक जा ० यावत् म महानुभाग || ३ || प० समर्थ वि० विकुर्वणा करने को से० (वह ज० जैसे जु० युवति को जु० युवान ह० हाथ गे० ग्रहण करे च० चक्र की ना० नाभी अ० आरा केवइयंचणं पभू विकुवित्तए ? गोयमा ! चमरेणं असुरराया माहड्डीए, जाव महाणुभागे सेणं तत्थ चोत्तीसाए भवणावास सय सहस्साणं चउसट्ठीए सामाणिय साहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं जाव विहरइ एवं महिदीए जाव महाणुभागे ॥ ३ ॥ एवइयं चणं पभू विकुव्वित्तए । से जहा नामए जुवतिं जवणे हत्थेणं हत्थं गेण्हेजा, चक्करबलवाला है, कितना सुखवाला है, कैसा महानुभागवाला है, और किस प्रकार कितने रूप करने को {समर्थ है ? अहो गौतम ! चमर नामक असुरेन्द्र महर्द्धिक यावत् महानुभागवाला है.
उन को चौतीस
लाख भुवन, चौसठ हजार सामानिक, और तेत्तीस त्रयत्रिंशक ऐसी ऋद्धि है ॥ ३ ॥ अत्र इन की वैक्रेय करने की शक्ति बताते हैं. जैसे काम से पीडित कोई युवान पुरुष अपने हस्त से युवति का हस्त पकडे, और जैसे चक्र की नाभि को आरे से पूरे अर्थात् चक्र की नाभि के छिद्र में आरा डाले ऐसे ही अहो गौतम !
भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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