________________
>
शब्दार्य
३९४
2 अनुग्रदक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
॥ तृतीय शतकम् ॥ के कैसी वि० विकुर्वणा च• चमर कि० क्रिया जा० यान स्थि: स्त्रीन. नगर पा. लोकपाल अभ अधिपति ई० इन्द्रिय प० परिषदा त तीसरा स० शतक में द० दशउद्देशा ॥१॥ते. उस काल ते.. उस समय में मो० मोया नामकी न० नगरी हो० थी व० वर्णनयुक्त ती० उत मो० माया नगरी व०बाहिर उ०ईशान कोन में नं० नंदन नाम का चेउद्यान हो था य०वर्णनयुक्त ते० उस काल ते० उस समय
केरिस विउव्वणा, चमर, किरिय, जाणि,त्थि; नगर, पालाय। आहवइ, इंदिय,परिसा; तइयंमि सए दसुदेस॥ १॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नाम नयरीहोत्था,वण्णओ,तीसेणं मोयानयरीए बाहया उत्तर पुरच्छिमे दिसीभाए, नंदणे नामं चेइए होत्था, वण्णओ। तेणंकादुसरे शतकके अंतिम उद्देशे में अस्तिकायाका स्वरूप कहा. अब इस उद्देश में जीवास्तिकायका विचार कहते हैं. इस के दश उद्देशे बताते हैं.. जिन के नाम ? वैक्रेय करने की शक्ति व चमरेन्द्र आदि इन्द्रों का अधिकार २ चमर उत्पात अधिकार ३ कायिकादि क्रिया का अधिकार ४ वैकेय समुदात से देवता यान विकु सो साधु जाने ५ साधु बाहिर के पुद्गल ग्रहण कर स्त्री आदि के रूप विकुर्वे ६ साधु बाणारसी में समुद्घात करके राजगृह का रूप देखे ७ सोम आदि लोकपाल ८ असुरादि देव के कितने अधिपति १ इन्द्रिय का आधिकार १० चमर की परिषदा का अधिकार ॥ १॥ उस काल उस समय में मोया
२ प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी घालापसादजी *
भावार्थ