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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
480 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
२० रत्नप्रभा त० तैसे घ घनोदधि घ० घनवात त तनुवात ॥ १० ॥ इ० इस र० रत्नप्रभा का उ० आकाशांतर घ०धर्मास्तिकाया को किंक्या गो० गौतम सं० संख्यात वे भाग को फु० भाग को फुट स्पर्शे गो० गौतम सं० संख्यात वे भाग को फु· स्पर्शे नो० नहीं अ० को फु० स्पर्शे नो० नहीं संसंख्यात भाग को नो० नहीं अ असंख्यात भाग को नो० आकाशान्तर स० सर्व ज० जैसे र० रत्नप्रभा पु० पृथ्वी की व० वक्तव्यता भ०
स्पर्शे अ० असंख्यात असंख्यात वे भाग नहीं स० सर्व को उ
कही ए० ऐसे जा०
तहा घणोदहिघणवायत्तणुत्रायावि ॥ १० ॥ इमीसेर्ण भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइ भागं फुसइ, असंखेज्जइ भागं फुसइ ? पुच्छा गोयमा संखेज्जइ भागं फुसइ, णो असंखेज्जइ भागं फुसइ, णो संखेज्जे, नो असंखेजे, नो सव्वं फुसइ. ॥ उवासंतराई सव्वाई जहा रयणप्पभाए पुढवीषु वत्तव्या भणिया
जानना इसी तरह घनवात व तनुवात का जानना || १० || अहो भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के आकाशान्तरको धर्मास्तिकाया क्या संख्यातवे भाग से स्पर्श कर रही है यावत् सब स्पर्श कर रही है ? अहो गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के आकाशान्तर को धर्मास्तिकाय संख्यातवे भाग से स्पर्श कर रही है. जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी का आकाशान्तर कहा वैसे ही सातवी पृथ्वी तक के सत्र आकाशान्तर का जानना || ११||
++ 4 दूसरा शतक का दशवा उद्देशा
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