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शब्दार्थ
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+8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
संख्यात भाग फु० स्पो अ०असंख्यात भाग फु०स्पर्शस ० सर्व फु.स्पर्श गो गोतम नोश्नहीं सं०संख्यातवे भाग फु० स्पर्श अ० असंख्यातवे भागे फु० स्पर्श णो नहीं सं० संख्यात भाग फु० स्पर्श नो० नहीं ३० असंख्यात भाग फु० स्पर्श नो० नहीं स. सर्व फु० स्पर्श ॥ ९॥ इ. इस र० रत्नप्रभा पृथ्वी काई घ० घनोदधि ध० धर्मास्ति काया को किं. क्या सं० संख्यातवे भाग फु. स्पर्श गो० गौतम ज० जैसे है संखजइ भागं फुसइ, असंखेजइ भागं फुसइ, णो संखेजे भागे फुसइ, णो असंखे- १
जे भागं फुसइ, नो सव्वं फुसइ, ॥ ९॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ब
घणोदही धम्मत्थिंकायस्स किं संखजइ भागं फुसइ ? गोयमा ! जहा रयणप्पभाए रत्नप्रभा पृथ्वी को धर्मास्तिकाय क्या संख्यात वे भाग से स्पर्श कर रही है, असंख्यातवे भाग मे स्पर्श कर रही है, संख्यात भाग में या असंख्यात भाग में स्पर्शकर रही है या सब स्पर्शकर रही है ? अहो. गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी को धर्मास्तिकाय संख्यातवे भाग से स्पर्शकर नहीं रही है परंतु असंख्यातवे भाग 1 से स्पर्शकर रही है. क्यों कि रत्नप्रभा का पृथ्वी पिंड एक लाख अस्सी हजार योजन का है. संख्यात व असंख्यात भाग में अथवा सब स्पर्शकर नहीं रही है॥९॥ अहो भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी का घनोदाध कोई धर्मास्तिकाय क्या संख्यातवे भाग से स्पर्श कर रही है ? अहो गौतम ! जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी का कहा वैसे ही
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी*
भावार्थ