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शब्दार्थ
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पंचङ्ग हिववपण्णात्ति (भगवती) सूत्र
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पांव का ए. एक अ० अभिलाप ॥ ७॥ अ० अधो लोक में भं भगवन ध० धर्मास्तिकाय कि कितनी । फु० स्पर्शी है साकुच्छ अधिक अ० अर्ध से फ. स्पर्श ति० ति लोक में अ० असंख्यातवे भा० भाग को फु० स्पर्श उ. ऊर्थ लोक में दे. देशऊणा अ० अर्ध फु० स्पर्शे ॥ ८॥र० रत्नप्रभा पु. पृथ्वी ५० धर्मास्तिकाय किं०. क्या सं• संख्यातवे भा० भाग फु• स्पर्श अ० असंख्यातो भाग फु. स्पर्श सं० ३८९
अहो लोएणं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसइ ? गोयमा ! सातिरगं अद्धं फुसइ॥ तिरिय लोएणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! असंखेजइ भागं फुसइ ॥ उड्डलोएणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा : देसणं अडं फुसइ ॥ ८ ॥ इमाणं भंते! रयणप्पभाणं पुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेजइ भागं फुसइ, असंखेजइ भागं फुसइ
संखेजे भागं फुसइ, असंखेजे भागं फुसइ सव्वं फुसइ ? गोयमा ! णो व लोकाफाश का जान॥७॥ अहो भगान् ! अधोलोक में धर्मास्तिकाय कितनी स्पर्श कर रही है ?? अहो गौतम ! आधे से कुछ अधिक धर्मास्तिकाया का विभाग स्पर्श कर रहा है. क्यों कि सब मीलकर चौदह राजु का लोक है; उस में से अधोलोक सात राजु से कुछ अधिक है. अहो भगवन् ! तिच्छीलोकogo में कितनी धर्मास्तिकाय स्पर्श कर रही है ? अहो गौतम ! तिर्छा लोक में धर्मास्तिकाय असंख्यातवे भाग स्पर्श कर रही है क्यों कि १८०० योजन का तिर्छा लोक है. ऊर्भ लोक में धर्मास्तिकाय आधे से है कुछ कम स्पर्श कर रही है क्यों कि सात राजू से कुछ कम ऊर्ध लोक है ॥८॥ अहो भगवन् ! ।
दूसरा शतकका दसवा उद्देशा