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शब्दार्थ
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
[अ० अजीव द० द्रव्य देश अ० अगुरुलघु अ० अनंत अ० अगुरुलघु गु० गुण से सं० युक्त स० सर्व आकाश अ० अनंत भाग ऊणा ॥ ६ ॥ घ० धर्मास्तिकाय मं० भगवन् के कितनी बडी गो० गौतम लो० लोक में लो० लोक मात्र लो० लोक प्रमाण लो० लोक को स्पर्शी लो० लोक को फु०स्पर्श कर चि० रही है ए ऐसे अ० अधर्मास्ति काय लो० लोकाकाश जी० जीवास्ति काय पो० पुद्गलास्तिकाय पं० नो अजीवप्पदेसा; एगे अजीवदव्वद से अगुरुयलहुए, अनंतेहिं, अगुरुय लहुयगुणेहिं संजुते, सव्वागासे अनंतभागुणे ॥ ६ ॥ धम्मत्थिकाएणं भंते ! के महालए पण्णत्ते ? गोयमा ! लोए, लोयमेत्ते, लोयप्पमाणे, लोयफुडे, लोयंचेत्र फुसित्ताणं, चिट्ठइ ॥ एवं अहम्मत्थिकाए, लोयाकासे, जीवत्थिकाए, पोग्गलात्थिकाए पंचविएक्काभिलावा ॥७॥
अजीव द्रव्य का एक देश है. क्यों कि संपूर्ण लोकालोक का आकाश मीलकर एक स्कंध होता है और अलोक में मात्र एक अलोकाकाश ही है. इसलिये एक अजीव द्रव्य का देश गिना गया है. वह अनंत पर्यायरूप अगुरुलघु स्वभाव सहित है. लोकाकाश की अपेक्षा से अनंत भाग रूप है इस से सब आकाश के अनंतवे भाग कम बतलाया है ॥ ३ ॥ अव धर्मास्तिकायादि के प्रमाण का प्रश्न पूछते हैं. अहो भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितनी बडी है ? अहो गौतम ! धर्मास्तिकाय पंचास्तिकायमय लोक जैसी है, लोक मात्र है, लोक प्रदेश प्रमाण है, सब लोक के प्रदेश को स्पर्श कर रही है. ऐसे ही अधर्मास्तिकाय
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी जालाप्रसादजी *
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