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शब्दार्थ
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42 अनुवादक- लब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
ते० तेइन्द्रिय च० चतुरेन्द्रिय पं० पंचेन्द्रिय अ० अनिन्द्रिय जे. जो जी० जीवदेश ते वे नि निश्चय ए. एकेन्द्रिय देश जा. यावत् अ० अनिन्द्रिय ५० प्रदेश जे. जो अ० अजीव ते वे दु० दो प्रकार के प० प्ररूपे रू० रूपी अ० अरूपी जे. जो रू० रूपी ते वे च० चार प्रकार के ख. स्कन्ध खं० स्कन्धदेश खं० स्कन्ध प्रदेश प० परमाणु पुगल जे. जो अ० अरूपी ते वे पं० पांच प्रकार के ध० धर्मास्तिकाय नो० नहीं ध० धर्मास्तिकाय का देश ध० धर्मास्तिकाय काय का प्रदेश अ० अधर्मास्ति काय नो० __ देसावि,अजीव पदेसावि । जे जीवा ते नियमा एगिदिया,बेइंदिया, तेइंदिया चउरिदिया, . पंचिंदिया, आणिंदिया. जे जीवदेसा ते नियमा एगिदियदेसा जाव आणिदियपदेसा ॥
जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा रुवीय, अरूवाय । जेरूवी ते चउविहा पण्णत्ता, तंजहा खंधा, खंधदेसा, खंधपदेसा; परमाणु पोग्गला । जे अरूवी ते लोकाकाश में जीव, जीव के देश, जीव के प्रदेश, अजीव, अजीव के देशव अजीव के प्रदेश हैं. जीव हैं वे एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय व अनिन्द्रिय हैं. जो जीव के देश हैं वे भी एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय के देश हैं और वैसे ही प्रदेश हैं. अजीव के दो भेद १ कपी अजीव २ अरूपी अजीव. रूपी अजीव के चार भेद स्कंध, स्कंध देश, स्कंध प्रदेश व परमाणु पुगल. अरूपी अजीव के पांच भेद. १ धर्मास्तिकाय २ धर्मास्तिकाया का प्रदेश, ३ अधर्मास्तिकाय, ४ अधर्मास्तिकाया का प्रदेश
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावाथे