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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
488888 दूसरा शतक का दशवी उद्देशा
{इसलिये ए० ऐसा बु० कहाजाता है गो० गौतम जी० जीव सं० उत्थानसहित जा० यावत् व कहना है ॥ ४ ॥ क० कितना प्रकारका मं० भगवन् आ० आकाश गो० गौतम दु० दोप्रकार का आ० आकाश लो० लोक आकाश अ० अलोक आकाश लो० लोकाकाश में किं० क्या जी० जीव जी० जीवदेश जी० जीवप्रदेश) अ० अजीव अ० अजीवदेश अ० अजीव प्रदेश गो० गौतम जी जी जी० जीवदेश जी० जीवप्रदेश अ० {अजीव अ० अजीवदेश अ० अजीव प्रदेश जे० जो जी०जीव ते ० वे नि०निश्चय ए० एकेन्द्रिय बे० बेइन्द्रिय पजवाणं, केवलदंसण पज्जत्राणं, उवओगं गच्छइ, "उचओग लक्खणेणं जीवे" सेतेणट्टेणं एवं बुवाई, गोमा ! जीवे सउट्ठाणे जाव वत्तव्वं सिया ॥ ४ ॥ कइ विहेणं भंते ! आगासे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे आगासे प० तं० लोयागासेय, अलोयागाय । लोयागासेणं भंते ! किं जीवा, जीवदेसा, जीव एसा; अजीवा, अजीवदेसा, अजीव एसा ? गोयमा ! जीवावि, जीवदेसावि, जीव पदेसावि; अजीवावि, अजीवउपयोग लक्षण वाला जीव कहाता है इससे अहो गौतम : उत्थानादि सहित जीव आत्म[ भाव से चैतन्यपना बताता है ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! आकाश के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! आकाश के दो भेद कहे हैं ? लोकाकाश और २ अलोकाकाश. अहो भगवन् ! लोकाकाश में क्या जीव, जीव के देश, जीव के प्रदेश, व अजीव, अजीव के देश या अजीव के प्रदेश हैं ? अहो गौतम !
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