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शब्दार्थ
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपनी
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गौतम जी जीव स. उत्थान सहित जा. यावत् उ० देखाडे ५० कहना से वह के. कैसे जा यावत् व० कहना गो० गौतम जी जीव अनंत आ० मतिझान प० पर्यव ६० ऐसे मु० श्रुतज्ञान पर्यो ।
• अवधिज्ञान पर्यव म० मनःपर्यवज्ञान पर्यव के. केवलज्ञान के पर्यव म० मतिअज्ञान के पर्यव मु. धनअज्ञान के पर्यव वि विभंगज्ञान के पर्यच च चक्षुदर्शन के पर्यव अ० अचक्षुदर्शन के पर्यव ओ० अवदर्शन पर्यव के केवलदर्शन के पर्यव उ० उपयोग को गं० जावे उ० उपयोग लक्षण से से० वह ते.
जीवेणं सउटाणे 'जाव उवदंसेईति वत्तव्वं सिया । सेकेणट्रेणं जाव वत्तव्वं सिया ? गोयमा! जीवेणं अनंता आभिाणबोहियनाणपजवाणं, एवं सुयनाणपजवाणं, ओहिनाण । पजवाणं, मणपज्जवनाणपजवाणं केवलणाणपजाणं, मइअन्नाणपज्जवाणं, सुयअन्नाण
पजवाणं विभंगनाणपजवाणं, चक्खुदंसणपज्जवाणं, अचक्खुदंसणपजवाणं, ओहिदसण. वीर्य. परुषात्कार पराक्रम सहित जीव आत्मपरिणाम मे से क्या चैतन्यपना बताता है! अहो
तम ? 'उत्थानादि सहित जीव आत्मभाव से चैतन्यपना बताता है. अहो भगवन् ! किस तरह उत्थानादि सहित जीव चैतन्यपना बताता है ! अहो गौतम ! जीव अनंत मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान, केवल ज्ञान, मति कज्ञान; श्रुत कज्ञान, विभंग ज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवघि दर्शन व केवल दर्शन के पर्यायात्मक चैतना लक्षण को कहा जाता है अर्थात् आत्मभाव में वर्तता है ।
+काशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *