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________________ शब्दार्थ ३८३ सत्र ग० ग्रहित को गो० गौतम ध० धर्मास्ति काय व० कहना ए० ऐसे अ० अधर्मास्ति काय आ० आका शास्ति काय जी. जीवास्ति काय पो० पुद्गलास्ति ए० ऐसे ही न० विशेष ति तीन का प०प्रदेश अ०१० 0७ अनंत भा० कहना ॥ ३ ॥ नी० जीव भं भगवन् स. उत्थान सहित स० कर्म सहित स. बलसहित । वीर्यसहित म० पुरुषात्कार पराक्रम सहित आ० आत्म भाव से उ० देखाडे व. कहना हं० हां गो०१ गोयमा ! धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया एवं अहम्मत्थिकाएवि, आगासत्थिकाय, जीवत्थिकाय, पोग्गलत्थि काएवि एवं चेव नवरं तिण्हंपि पएसा अणता भाणियन्वा सेसं तंचेव ॥ ३ ॥ जीवेणं भंते ! सउट्ठाणे, सकम्मे, सबले, सवीरिए, सपुरि सक्कार परक्कमे, आयभावेणं जीवभाव उवदंसेईति वत्तव्यं सिया ? हेता गोयमा ! भावाथे तव अहो भगवन् ! धर्मास्तिकाय किसको कहतेहैं ? असंख्यात प्रदेशात्मक धर्मास्ति काय है यह सब कृत्स्न, प्रतिपूर्ण, निरविशेष और एकही शब्द कहनेमे सब आजावे वैसे होवे उसी ही धर्मास्तिकाया कहते हैं. ऐसही अधर्मास्तिकाय. आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय व पुद्गलास्ति कायका जानना. विशेष इतना कि आकाशास्तिकायादिक में प्रदेश अनंत होनेसे अनंत कहना. ॥ ३ ॥ उपयोग लक्षण वाला? जीवास्ति काय पहिले कहा. अब जीव के उत्थानादि गुणों बताते है. अहो भगवन् ! उत्थान, कर्म, पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र दूसरा शतक का दशवा उद्देशा 298
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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