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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
इसलिये गो० गौतम धर्मास्ति काय व
ऐसे छ० छत्र च० चमर दं० दंड दृ० वस्त्र आ० आयुध मो० मोदक से० वह ते ए० ऐसा कहा जाता है ए० एक ध० धर्मास्तिकाय प्रदेश नो० नहीं घ० [ कहना जा० यावत् ए० एक प्रदेश ऊणा {से वह किं० क्या खा० ख्याति केलिये भं०
ध० धर्मास्ति काय को णो० नहीं ध० धर्मास्तिकाय व० कहना भगवन् घ० धर्मास्तिकाय व० कहना गो० गौतम अ० असंख्यात ०धर्मास्ति काय के प० प्रदेश तेव्वे स० सर्व क० कृत्स्न प० प्रतिपूर्ण नि० निरविशेष ए० एक ग० ग्रहण दूसे, आउहे, मोयए, सेतेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ एगे धम्मत्थि काय पदेसे णो धम्म त्थिकाएत्ति वत्तव्यं सिया जाव एगपदेसूणेवियण धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव् सिया । से किं खाइएणं भंते ! धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वंसिमा ? गोयया ! असंखेज्जा धम्मत्थि कायप्पएसा ते सव्वे कसिणा, पडिपुण्णा, निरवसेसा एकग्गहण गहिया एसणं टुकडे को दंड कहना, बस्त्र के टुकंडे को वस्त्र कहता, आयुध के टुकडे को आयुध कहना, या लड्डुके ( टुकडे को क्या लड्डु कहना ? अहो भगवन् ! ऐसा नहीं कहा जाता है. इसी तरह अहो गौतम ! धर्मास्ति (काय के एक प्रदेश यावत् एक प्रदेश कप को धर्मास्तिकाय नहीं कह सकते हैं * क्यों कि
* यह वचन निश्चय नयकी अपेक्षासे ग्रहण किया है क्योंकि व्यवहार नयसे खण्डित घडेको घडा कहते हैं वैसेही धर्मास्तिकायके एक प्रदेश वगैरह को भी धर्मास्तिकाय कह सकत हैं:
* प्रकाशक राजाहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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