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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ |
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र 403
ऊणा को घ० धर्मास्तिकाय व० कहना णो० नहीं इ० यह अर्थ स समर्थ से बढ़ के० कैसे ए० ऐसा बु० कहा जाता है ए० एक ध० : धर्मास्तिकाया के प्रदेश को नो० नहीं ध० धर्मास्तिकाय व० कहना जा० यावत् ए० एक प्रदेश ऊणा घ० धर्मास्ति काया को नो० नहीं घ० धर्मास्तिकाय व० कहना गो० गौतम खं० खंडित च० चक्र स० संपूर्ण च० चक्र भ० भगवन् नो० नहीं खं० खंडित चक्र सं० संपूर्ण चक्र ए० ३
ari धम्मथिका धम्मत्थिकाएत्ति वत्तत्वं सिया ? णो इट्ठे समट्ठे से केणट्टेणं भंते! एवं gris एगे धम्मत्थिकायप्पदेसे नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्यं सिया जाव एगपदेसुत्रियणं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्यं सिया ॥ सेणूणं गोयमा ! खंडे चक्के सगले चक्के ? भगवं ! नो खंडे चक्के सगले चक्के । एवं छत्ते, चम्मे, दंडे,
१०० - दुसरा शतकका दशना उद्देशा
( अहो भगवन् ! किस कारनसे धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय नहीं । [ कहना. ऐसे ही दो, तीन, चार, पांव, छ, सात, आठ, नत्र, दश, संख्यात, असंख्यात यावव एक प्रदेश कम को धर्मास्ति काय नहीं कह सकते है ? अहो गौतम ! चक्र के टुकडे को क्या चक्र कहना ? अहो भगवन् ! चक्र के टुकड़े को चक्र नहीं कहना परंतु पूर्ण चक्र को ही चक्र कहना और भी चमर के अमुक विभाग को क्या चमर कहना, छत्र के अमुक विभाग को क्या छत्र कहना, दंडके)
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