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शब्दार्थ
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48. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
ग्रहणगुण ॥२॥ ए. एक भ० गवन् ध धर्मास्तिकाय का प०प्रदेश को ध धर्मास्तिकाय व कहना गो गौतम नो० नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ ए. ऐमे दो० दो ति० तीन च० चार पंपांच छ० छ स० सात अ० आठ न० नव द० दश सं० संख्याते अ० असंख्याते भं भगवन् ध० धर्मास्तिकाय का १५०प्रदेश को ध०. धर्मास्तिकाय व० कहना गो० गौतम नो० नहीं इ० यह अर्थ स. समर्थ ए एक प्रदेश
गंध रस फासमंते, गुणओं गहणगुणे ॥ २ ॥ एगे भंते ! धम्मत्थिकाय प्पदेसे धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव् सिया ? गोयमा ! णो इणटे समटे. एवं दोन्निवि तिन्निवि, चत्तारि, पंच, छ, सत्त, अट्ठ,नव, दस, संखेज्जा, असंखेजा भंते ! धम्मत्यिकाय.
प्पदेसा धम्मत्यिकाएत्ति वत्तव्बंसिया ? गोयमा ! णो इणढे समढे. एगपदेसूणे मते हैं ॥ २॥ अहो भगवन् ! धर्मास्ति काय के एक प्रदेश को क्या धर्मास्ति काय कहना ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! धर्मास्तिकाय के दो; तीन चार, पांच, छ. सात, आठ, नव, दश, संख्याते या असंख्याते प्रदेश को क्या धर्मास्तिकाय कहना, ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! धर्मास्तिकीय, के समस्त प्रदेशों में से एक प्रदेश कम होवे तो क्या उसे धर्मास्तिकाया कहना ?: अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है।
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प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी
भावार्थ