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सूत्र
भावार्थ |
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
शाश्वत अ० अवस्थित लो० लोक द्रव्य स० संक्षेप से पं० पांच प्रकार का द० द्रव्य से जा० यावत् } गु० गुण से द० द्रव्य से अ० अनंत जी० जीव द्रव्य खे० क्षेत्र से लो० लोक प्रमाण का कालसे न०नहीं क० कदापि न० नहीं आ था जा० यावत् नि० नित्य भा० भाव से अ० अवर्ण अ० अगंध अ० अरस अ० अस्पर्श गु० गुण से उ० उपयोग गुण पो० पुद्गलास्तिकाय मं० भगवन् क०कितने वर्ण क० कितने गंध र०रस फा०स्पर्शगो० गौतम पं० पांचवर्ण पंपांचरस दु० दोगंध अ० आठ स्पर्श रूरूपी अ० अजीव सा० कइरसे कइफासे ? गोयमा ! अवने जाव अरूवी, जीवे सासए, अवट्ठिए, लोगदव्वे, । से. समासओ पंचविहे प० तं दव्वओ जाव गुणओ. दव्वओणं जीवत्थिकाए अनंताइं जीवदव्वाई; खेत्तओ लोगप्पभाणमेत्ते, कालओ नकथाइ न आसि • जाव निच्चे. भावओ पुण अवन्ने, अगंधे, अरसे अफासे, गुणओ उवओग गुणे । पोग्गलात्थि काएणं भंते ! कंइवण्णे, कइगंधरसफासे ? गोयमा ! पचवन्ने पंचर से, दुगंधे, काय जैसा परंतु क्षेत्र से आकाशास्ति काय लोकालोक प्रमाण अनंत, और गुण से अवगाहन - अवकाश {देने वाला - गुण है. अहो भगवन् ! जीवास्ति काय में कितने वर्ण, गंध, रस व स्पर्श हैं ? अहो गौतम ! जीवास्ति काय { में वर्ण, गंध, रस व स्पर्श नहीं है. वह अरूपी, जीव, शाश्वत, अवस्थित व लोक द्रव्य है. उसके पांच भेद { किये गये हैं द्रव्य से यात्रत् गुण से. द्रव्य से जीव द्रव्य अनंत, क्षेत्र से लोक प्रमाण, काल से अतीत में
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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