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स्तिकाय भं• भगान् क० कितना व० वर्ण ग० गंध र० रस फा० स्पर्श गो० गौतम भ० भवर्ण अ०* अगंध अ० अरस अ० अस्पर्श अ० अरूपी अ. अजीव सा० शाश्वत अ० अवस्थित लो० लोक द्रव्य स० संक्षेप से पं० पांच प्रकार की द० द्रव्य से खे० क्षेत्र से का. काल से भा० भाव से गु० गुण से दन्द्रव्य से ए० एकद्रव्य खे०क्षेत्र से लो लोक प्रमाण का कालसे न नहीं क०कदापि न० नहीं आ०था न०
॥ १॥ धम्मत्थि काएणं भंते ! कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे ? गोयमा! अवण्णे, अगंधे. अरसे, अफासे, अरूबी, अजीवे, सासए, अवट्टिए, लोगदव्वे । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते तंजहा दवओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्व
ओणं धम्मत्थिकाए एगेदव्वे, खेत्तओ लोगप्पमाणमेसे, कालओ नकयाई, भावार्थ है और पुद्गलास्तिकाय ॥ १॥ अटो भगवन् ! धर्मास्तिकाया में कितने वर्ण, गंध, रस व स्पर्श हैं. ?
- अहो गौतम ! धर्मास्तिकाया में पांच वर्ण में से एक भी वर्ण नहीं है, दोगंध में से एक भी गंध नहीं है, 13 पांच रस में से एक भी रम नहीं है, आठ स्पर्श में से एक भी स्पर्श नहीं है. अरूपी, अजीव, शाश्वत
अवस्थित व पंचारित कायिक लोक होने से उस का एक अशभृत द्रव्य है. उम के द्रव्य से, क्षेत्र से, काल 1 से, भाव से व गुग से ऐसे पांच भेद किये हैं. द्रव्य से धर्मास्तिकाय एक द्रव्य, क्षेत्र से धर्मास्तिकाय
१ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्यालाप्रसादनी *