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शब्दार्थक कितनी भं० भगवन् अ० अस्तिकाय गो० गौतम पं० पांच अ०' अस्तिकाय ध० धर्मास्तिकाय अ०
अधर्मास्ति काय आ० आकाशास्ति काय जी० जीवास्ति काय पो० पुद्गलास्ति काय ॥ १ ॥ध. धर्माकइणं भंते ! आत्थिकाया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच आत्थिकाया पण्णत्ता तंजहा, धम्मत्थिकाए, अधम्मात्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए. पोग्गलत्थि काए
भावार्थ
48408 पंचमांग विवाह पण्णचि ( भवगती ) सूत्र
गत उद्देशे में क्षेत्रका स्वरूप कहा है, उस में आस्तिकाय होने से अस्तिकाया का स्वरूप कहते हैं. में अहो भगवन् ! अस्तिकाय कितनी कही ? अहो गौतम ! अस्तिकाय पांच कही. अस्ति शब्द से प्रदेश में ग्रहण करना और कायशब्द से राशि अर्थात् प्रदेशों की राशि-समुदाय सो अस्तिकाय. अथवा अस्ति शब्द काल प्रय बाची अव्यय है इस से जो प्रदेश अतीत काल में थे, वर्तमान में हैं और आगामिक में होंगे सो अस्तिकाय. उस के नाम धर्मास्तिकाय * अधर्मास्ति काय, आकाशस्तिकाय, जीवास्ति काय
* धर्मास्तिकाय पद मांगलीक होने से प्रथम ग्रहण किया है, तत्पश्चात् धर्मास्किाय का विपरीत % स्वभाव वाला अधर्मास्तिकाय, इन को आधार भूत आकाशास्तिकाय, अनंत अमूर्तत्व का साधर्म्य स्वभाव है। है होने से जीवास्ति काय, और उस का उपष्टंभ करने वाला पुल होने से पुद्गलास्ति काय ऐसा क्रम रक्खा गया है.
48848 दूसरा शतक का दशा उद्देशा 82463800