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शब्दाथ
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रस
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
कि० क्या इ० इसे भं० भगवनू स० समय क्षेत्र ५० कहना गो० गौतम अ० अढाइ दीद्वीप दो दी। समुद्र प० उपलक्षित स० समय क्षेत्र १० कहा है त० तहां अ. यह जं. जंबूद्वीप स० सर्व दी० द्वीप ।।
समुद्र की स० मध्य में एक ऐसे जी०जीवाभिगम व वक्तव्यता ने जानना जा० यावत् अ०आभ्यंतर पु० पुष्कराध जो० ज्योतिषी वि० छोडकर ॥ २ ॥९॥ =
= : किमिदं भंते ! समयक्खेत्तति पवुच्चइ ? गोयमा ! अड्डाइजा दीवा दोय समुद्दा एसणं ___ पवइए समयक्खेत्तेत्ति पवुच्चइ, तत्थणं अयं जंबूद्दीव दीवे सव्वद्दीव समुदाणं स
ब्वाभितरे एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा, जाव आभितर पुक्खरद्धं जोइस विहणं ॥ इइ बिईयसए नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २ ॥ ९ ॥ होता है अर्थात् जिस क्षेत्र में दिन, पक्ष, मास, वर्ष वगैरह काल उपलक्षित होवे सूर्य की गति से जाना जावे उसे समय क्षेत्र कहा है. अढाई द्वीप की बाहिर मर्यादि ज्योतिषी के विमानोंका हलन चलन नहीं होता है. अढाई द्वीप में सब द्वीप समुद्रों में छोटा प्रथप जम्बूद्वीप नामक द्वीप है वगैरह अढाड द्वीप की वक्तव्यता जैसी जीवाभिगम में कही है वैसी यहां पर कहना. मात्र ज्योतिषी की वक्तव्यता नहीं कहना. यह दूसरे शतकका नववा उद्देशा समाप्त हुवा ॥ २॥ ९॥ + +..
अकाशक-राजाबहादुर लाला मुत्सदवसायमा ज्वालामसादजी
भावार्थ