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शब्दार्थ अर्धयोजन उ० उंचे उ० उंचपने ए० परस्पर का बाजु पं० पांच दा० द्वार स० शत अ० अढाइसोक
जो० योजन उ० उंचे उ० उचपने ए० एक.प. पचहत्त जो० योजन वि० चौडे उ० उपर तक तलमें सो. सोलह जो० योजन स. सहस्र आ० लंबा वि० चौडा प. पञ्चास जो०योजन स०सहस्र पं० पांच स०सत्तानव जो० योजन शत किं• किंचित् वि०विशेष ऊन प० परिधि स० सर्व प्रमाण वे० वैमानिक का १५. प्रमाण का अ० अर्ध ने जानना ॥२॥८
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+ . एग पणहत्तरी जोयणाई विक्खंभेणं, उवरियतलेणं सोलस जोयण सहस्साई आयाम विक्खंभेणं, पन्नासं जोयण सहरसाइं पंचयसत्ताणउय जोयणसए किंचिविसेसणे,
परिक्खेवेणं सवप्पमाणं वेमाणियस्स प्रमाणस्स अद्धं नेयव्वं ॥ इइ बिईयसए
____ अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २ ॥ ८ ॥ भावार्थ
के चौडे कहे हैं. घरके पीठ सोलह हजार योजन के चौडे कहे हैं. उसकी परिधि५०५९७योजन में कुछ कम की जानना. सब प्रमाण सौधर्मादि वैमानिक से आधा जानना. यह दूसरे शतक का आठवा उद्देशा समाप्त हुवा ॥२॥८॥
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+ 23 गत उदेशे में देवता का अधिकार कहा अब मनुष्य का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! समय1 क्षेत्र क्यों कहता है ? अहो. गौतम ! अढाइ द्वीप व दो समुद्र को समय क्षेत्र कहते हैं. समय का अर्थ काल
पंचमांम विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
48674 दुसग शतक का आठवा उद्देशा