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शब्दार्थ + त• तहां च० चमरकी अ० अमरेन्द्र अ० असुरराजा के च० चमरचंचा रा• राज्यधानी १७. पल्पी ।
ए. एक योजन स० लक्ष आ०- लम्बी वि० चौडी ज• जंबद्वीप प्रमाण दि. द्वीपार्घ जो० योजन शत उ० ऊंचापने मू० मूल में प० पन्नास जो० योजन वि० चौडी उ• उपर सं० साडीबारह जो० योजन । क० कोसीसा कांगडा अ० अर्द्ध जो० योजन आ० लंबे को० कोश वि० चौडा दो० देसऊणा अ.
सहस्साइं उग्गाहित्ता तत्थण चमरस्स असुरिंदस्स. असुररण्णो चमरचंचानामं रायहाणी पण्णत्ता । एगं जोयण सय सहस्सं आयाम विक्खंभेणं, जंबूहीवप्पमाणा दीवड्ड जोयण सय उडूं उच्चत्तेणं मले पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं उचार अहतरस जायेणाई कविसीसगा अद्धजोयणं आयामेणं, कोसं विक्खंभेणं देसण अद्धजोयणं उड़े
उच्चत्तेणं एग मेगाए याहाए पंच २ दार सया अढाइ जोयण सयाई उड्ढे उच्चत्तेणं भावार्थ . योजन रत्नप्रभा पृथ्वी को अवगाहकर चमर नामक असुरेन्द्र की चमरचंचा नामक राज्यधानी कही..
वह राज्यधानी जम्बूदीप प्रमाण एक लाख योजन की लम्बी चौडी कही. उस के कोट एक सो पञ्चास योजनके ऊंचे कहे,मूलमें पच्चास योजनकी चौडी कही उपर साडी बारह योजन की चौडी कही. उस उपर कोटके कांगरे आधे कोशके लम्बे, एक कोश के चौडे व कुच्छकम आधेकोशके ऊंचे कहे. उस कोट की एक २ वाजु पांचसो २ दरवजे हैं.. बेदार अढाइसो योजन के ऊंचे व एकसो पचहत्तर योजन
बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
जाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी