________________
शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
*36 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
कहना ॥ २ ॥ ७ ॥
*
*
१वे० वैमानिक उ० उद्देशा भा० क० कहाँ भं० भगवन् अ० {जबूद्वीप के मं० मेरु की दा०
असुरेन्द्र अ० असुर कुमार राजा की स० सुधर्मा सभा गो० गौतम जं० दक्षिण में ति० तिर्च्छा अ० असंख्यात दी० द्वीप समुद्र वि० उलंघ कर अ० अरुणवर द्वीप की बा० बाहिर की वे० वेदिका से अं० अरुणोदय स० समुद्र में बा० बीयालीस जो० योजन सहस्र ओ० अवगाह कर च० चमर का अ० असुरेन्द्र अः असुर राजा का ति० तिगिच्छ कूट उद्देसो सम्मत्तो ॥ २ ॥ ७ ॥
*
कहिणं भंते ! चमरस्त असुादिस्स असुरकुमार रण्णो सभा सुहम्मा पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबूदीवेद्दी मंदररस पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियमसंखेज्ज दवि समुहं विश्वइत्ता अरुणवर दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयअताओ अरुणोदयं समुदं उदेशे से जानना. यह दूसरा शतक का सातवा उद्देशा पूर्ण हुआ || २ || ७ ॥
x
सातवे उद्देशे में देवता का अधिकार कहा. इसलिये प्रथम भवनपति देवता संबंधी प्रश्न करतें अहो भगवन् ! असुरकुमार के राजा चमर नामक असुरेन्द्र की सुधर्मा सभा कहां है ? अ गौतम ! जंम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में तिच्र्च्छा असंख्याते द्वीप समुद्र उल्लंघ कर जावे तो वहां अरुण वर द्वीप आता है. उस की बाहिर की वेदिकासे बेतालीस हजार योजन अवगाह कर अरुणोदय समुद्र
Me
+8+4 दूसरा शतक का आठवा उदेशा
३६७