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शब्दार्थ
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भावार्थ
पंचङ्ग हिचवपण्णात्ति ( भगवती )
है क० कितने भं० भगवन् दे० देव ५० प्ररूपे गो. गौतम च. चार प्रकार के दे० देव ५० प्ररूपे भ० भुवनपति वा० वाणव्यंतर जो० ज्योतिषी वे० वैमानिक क. कहां भं० भगवन् भ० भुवनपति दे देव | के ठा० स्थान प० कहे गो० गौतम इ० इस र० रत्नप्रभा पु. पृथी की ज• जैसे ठा० स्थान पद में |
कइविहाणं भंते ! देवा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा देवा पण्णत्ता तंजहा-भवणवइ, वाणमंतर, जोइस, वेमाणिया, । कहिणं भंते ! भवणवासीणं देवाणं ठाणा 4 पण्णत्ता ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया । विशुद्ध भाषा बोलने से देव होवे इसलिये देवता का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! देवता के कितने भेद कहे हैं ? देवताओं के चार भेद कहे हैं. १ भुवनपति २ वाणव्यंतर ३ ज्योतिषी और ४ वैमानिक. अहो भगवन ! भवनपति देवों के स्थान कहां कहे हैं ? अहो गौतम! पनवणा के स्थान पद में इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी का एक लाख अस्सी हजार योजन का पृथ्वी पिंड कहा है. उसमें
हजार उपर व नीचे छोड़ने से एक लाख अठत्तर हजार योजन की पोलार है. उस में बारह आंतरे व तेरह पाथडे हैं. इस के आंतरे में भवनपति देवता के सात क्रोड बहोत्तर लाख भुवन कहे हैं. भवनपति। देवलोक के असंख्यातवे भाग में उत्पन्न होते हैं. मारणान्तिक समुद्घातवी लोक के असंख्यातवे भाग में भवनपनि वर्तते हैं. स्वस्थान आश्री पात कोड वहात्तर लाख भवन कहे हैं. वे भी लोक के असंख्यात
दूसरा शतकका सातवा उद्देशा 9
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