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________________ शब्दार्थ हामा मदा उ. उग आ० अप्कायपने माता है गो० गीतम म. महातपापतीर प्रभव पा० झरण का अ० अर्थ ५० प्ररूपा से ऐसा में भगवन भ. भगवान गो गौतम स० श्रमण भगवान म. महावीर को वं दना करते हैं न नपस्कार करते हैं ॥ ॥ ॥ * मे वह भंग भगवन् म मानता है आ० अवधारणी भाषा भाः भाषापद भा० कहना ॥२॥६॥ गोयमा : महातवावतीरप्पभवस्स अट्रे पण्णत्ते ॥ मेने भंते भतेत्ति, भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदड़ जममइ ॥ बिईय सए पंचमो उदेसो सम्मत्तो ॥ २ ॥ ५॥ सेणणं भंते ! मणामीति ओहारणी भासा भासापद भाणियव्यं ॥ विश्वसए उदमो सम्मत्ती ॥ २ ॥ ६॥ भावार्थ - प्रभव नामक झरणा न उस का अर्थ कहा, अहः भगान : आपका वचन मन्य है. एमा कहकर भगवन्त गौतपने श्रवण भगवन्न को वंदना नमस्कार किया. यह दमग शतकका पांचवा उद्देशा पूर्ण हवा ॥२॥ ___ गत दश में पियामापी को उमालय मापा का घरूप कहते हैं. अहा भगवन में समा मानना है कि अवधारिणी भाप इस भयानकप में श्री पनवणा मत्रका अग्यान्हया मापापद कहना. भाषाको दत्य क्षेत्र. काल व भार पसे अनेक, भेद में विचारना यह दसग शनकका या उद्देशा पूर्ण हवा !! अनवादक-बालब्रह्मचगिमुनि श्री अमोलक ऋपिजी 27 * प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजी * -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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