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शब्दार्थ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी -
दु. वृक्ष केवनखंड से मं० शोभित दे. प्रदेश स० शोभायमान जा. यावत् प० प्रतिरूप त• तहां प० बहुत उ० विस्तीर्ण ब० बादल सं० सन्मुख होते हैं उ० उपजते हैं. वा. वर्पते हैं त. भरा हुवा म सदैव उ० उष्ण आ. पानी अ० झरना है से वह क कैसे भं० भगवन् गो० गौतम ज. जो अ० अन्य तीर्थिक ए. ऐसा आ० कहते हैं जा० यावत् ते वे एक ऐसा अ. कहते हैं मि० मिथ्या ते वे आ० कहते हैं अ० मैं पु०फीर ऐ०ऐसा आ०कहता हूं रा०राजगृह न० नगर की ब०बाहिर बेल्वेभार प०पर्वत
जोयणाई आयाम विक्खंभेणं नाणादुम खंडमंडिउद्देसे.सस्सिरीए जाव पडिरूवे,तत्थणंबहवे उदारा बलाहया सेयति समुच्छियंति वासंति तव्वतिरित्तेवियणं सयासमिउं उसिणे आउकाए अभिनिस्सवइ, से कहमेयं भंते एवं ? गोयमा ! जणते अणउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जेते एव माइक्खंति मिच्छंते एवमाइक्खंति ॥ अहं
पुण गोयमा ! एवंमाइक्खामि, भासामि, "पण्णवेमि, परूवेमि एवं खलु रायगिहस्स वगैरह से सुशोभित यावतू प्रतिरूप है. इस गृह में बहुत बद्दल उत्पन्न सन्मुख होते हैं, उत्पन्न होते हैं
और वर्षते हैं. वह द्रह भरजाने से जो अधिक पानी नीकलता है वह पानी सदैव ऊष्ण योनिवाला रहता हैं अर्थात् जो पानी द्रह से बाहिर नीकलता है वह सदैव ऊष्ण रहता है. अहो भगवन ! यह किस तरह से है ? अहो गौतम ! जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं वे मिथ्या ऐसा कहते हैं, अर्थात् उन का कथन
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
oon... manasamanarasam