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शब्दार्थ
विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 480
वो० कर्म छेदनफल वो० कर्म छेदनसे अ०. अक्रिया फल भं० भगवन् अ० अक्रिया से किं० क्याफल मि०4 सिद्धि पर्यवसान फल प. मरूपा ॥ २५ ॥ अ० अन्यतीर्थिक भं० भगवन् ए. ऐसे आ० कहते हैं ५० मरूपते हैं रा० गजगृह न० नगरकी ब० बाहिर बे० बेभार ५० पर्वत की - अ० नीचे ए० तहां म० बडा ए. एकद्रह अ० पानीका अं० अनेक जो० योजन का आ० लम्बा वि० चौडा ना०. नानाप्रकार
सिद्धिपजवसाण फला पण्णत्ता गोयमा ! ॥ गाथा ॥ सवणे णाणेय विण्णाणे, पञ्चक्खाणेय संजमे ॥ अणण्हए तवे चेव, वोदाणे अकिरिया सिद्धी ॥१॥ २५ ॥ अण्णउत्थियाणं भंते ! एवं माइक्खंति भासंति पण्णवंति परूवंति एवं खलु रायागहस्स
नयरस्स बाहिया बेभारस्स पव्वयस्स अहे एत्थणं महं एगे हरए अप्पे पण्णत्ते अणेगाई कर्मों का क्षय होने से अक्रिया का फल होवे अर्थात योग निधन रूप फल होवे. अक्रिया से क्या फल? अहो गौतम ! अक्रिया से समस्त फल में सर्वोत्कृष्ट कर्मक्षयरूप मोक्षफल होवे. यों अनुक्रम से श्रवण, ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, संयम, पाश्रवनिरोध तप, निर्जरा, अक्रिया, व मुक्ति का फल होता है. ॥ २५ ॥ अब साधु सेवा नहीं करने से विपरीत भाषी होते हैं सो बताते हैं ? अहो भगवन् ! अन्य तीर्थिक ऐसा कहते हैं यावतू प्ररूपते हैं कि राजगृह नगर की बाहिर वेभार नामक पर्वत है उस की नीचे एक महान द्रह अनेक योजने की लम्बाइ व चौडाइ वाला है. विविध प्रकार के वृक्ष, वे वनखंड
484881 दूसरा शतक का पांचवा उद्देशा
भावार्थ