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शब्दार्थ
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48 अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भगवन् सश्रमण की फापर्युपासना करते कि क्या फ फल पु०पर्युपासना का गो०गौतम स० श्रवण फल सं० श्रवण से णा ज्ञानफल गा० ज्ञानसे कि क्याफल वि०विज्ञानफल वि. विज्ञानसे कि०क्याकल प० । प्रत्याख्यान फल प प्रत्याख्यानसे सं०संयमफल सं०संयम से अ० अनाश्रवफल अ० अनाश्रवसे ततप्रफल - ॥ २४ ॥ तहारूवेणं भंते ! समण वा पज्जुवासमाणस्स किं फला पज्जुवासणा?
गोयमा ! सवणफल । से णं भंते ! सवणे किं फले ? गोयमा ! णाणफले। सेणं भंते ! णाणे किं फले ? गोयमा ! विण्णाणफले । से गं भंते ! विण्णाणे किं फले ? गोयमा ! पचखाण फले । सेणं भंते ! पच्चक्खाणे किं फले ? संजम फले । सेणं भंते ! संजमे किं फले ? अणण्हय फले । एवं अणण्हए तव फले ।
तवे वोदाण फले । वोदाणे अकिरिया फले। से णं भंते ! अकिरिया किं फले ? क्या फल ? अहो गौतम ! ज्ञान से हेय ज्ञेय उपादेय जानने रूप विज्ञान फल होवे. अहो भगवन् ! विज्ञान से क्या फल ! अही गौतम ! विज्ञान से पापकर्म के प्रत्याख्यान का फल होवे ? अहो भगवन् ! प्रत्याख्यान । से क्या.फल ? अहो गौतम ! पाप-का प्रत्याख्यान करने से मेयम का फल होता है. अहो भगवन् ! संयम से क्या फल होवे ? अहो गौतम । संयम से नविन कर्मों के आश्रय द्वारों का रंधन करने का फल होवे al और इस तरह लघु. कर्म होने से तपस्यावंत होवे. तप से पूर्वकृत कर्मों का क्षय होवे. और पूर्वकृत ।
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मायक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ