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शब्दात तपसे अ० असमर्थ त तसे ने जानना अ० अवशेष जायावत् प० समर्थ सः सम्यक् अ० अभ्यास वाले
14 जा. यावत् स०सत्य ए. यह अर्थ णो नहीं आ० आत्मभाव व वक्तव्यता ॥ २३ ॥ अमैं गोगौतम ए. २०ऐसा आ० कहताहूं भा० बोलताहूं प० विशेष कहताई प० प्ररूपताहूं पु० पूर्व तक तप से पु० पूर्व संयम.०
से दे० देव दे० देवलोकमें उ० उत्पन्न होवे क० कर्म मे सं० संगसे दे० देव दे० देवलोक में उ० उत्पन्न * होते हैं स० सत्य ए. यह अर्थ णो० नहीं आ० आत्मभाव व वक्तव्यता ॥ २४ ॥ त० तथारूप
सच्चेणं एसमटे, णो चेवणं आयभाव वत्तन्वयाए ॥ २३ ॥ अहंपिणं गोयमा ! एव माइक्खामि, भासेमि, पनवेमि, फ्रूवेमि पुवतवेणं देवा देवलोएसु उववज्जति, ' पुवसंजमेणं देवा देवलोएसु उक्वजति, काम्मयाए देवा देवलोएसु उववजंति, सांगयाए देवा देवलोएसु उववजंति. पुवतवेणं, पुव्वसंजमेणं काम्मयाए, संगियाए
अजो देवा देवलोएसु उववज्जति. सच्चेणं एसमटे णो चेवणं आयभाव वत्तन्वयाए यह अर्थ सत्य है आत्म कल्पित नहीं है ॥ २४ ॥ यह सुनकर गौतम स्वामी साधु की सेवा से क्या फल : होता है ऐसा प्रश्न पूछते हैं. अहो भगवन् ! तथारूप श्रमण की सेवा करने वाले को क्याफल होवें ? अहो मौतम ! तथारूप श्रमण की सेवा करने से शास्त्र श्रवण का फल होवे. अहो भगवन् ! शास्त्र श्रवण से क्या फल होवे ? अहो गौतम ! शास्त्र श्रवण से श्रुतज्ञान की प्राप्ति होती है. अहो भगवन : ज्ञान से
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (-भवगती ) सूत्र
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दूसरा शतकका पचिया उद्देशा*411
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