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शब्दार्थ उ० आकर स० श्रमण ५० भगवन्त म. महावीर की अनजदीक ग• गमनागमनका प० प्रतिक्रमणकर ए.
शुद्धाशुद्ध आ० आलोचकर भ० भक्त पानी प० देखाडकर म० श्रमण भ. भगवन्त म० महावीर को जा. यावत् ए. ऐसा व० बोले ए. ऐसे भं० भगवन् अ० मैं तु. तुमारी अ० आज्ञा मिलते रा. राज गृह न० नगर मे उ ऊंच नी० नीच म० मध्यम कुल के घ० गृह समुदाय में भि• भिक्षा कोलिये अ.
बहुजणसदं निसामेइ एवं खलु देवाणुप्पिया तुंगियाए नयरीए बहिया पुप्फबईए चेइए पासावच्चिजा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं पुच्छिया, संजमेणं भंते ! किं फले ? तवे किं फले? तंचेव जाव सच्चेणं एसम? णो चेवणं आय भाववत्तब्वयाए ॥ तं पभूणं भंते ! ते थेरा भगवंतो तसिं समणोवासयाणं इमाई
एयारूवाइं वागरणाई वागरेत्तए उदाहु अप्पभू ? समियाणं भंते ! ते थेरा भगवंतो भावार्थ आज्ञा से राजगृह नगर में ऊंच नीच व मध्यम कुल में भिक्षा ग्रहण करने के लिये परिधरण करने बहुत.
मनुष्यों से मैंने ऐसा सुना कि तुंगिया नगरी की बाहिर पुष्पवती उद्यान में श्री पार्श्वनाथ स्वामी के स्थविर
वन्त को श्रमणोपासकोंने ऐमा प्रश्न पछा कि संयम से क्या फल, तप से क्या फल ? वे स्थविर में
भगवन्तने संयम का आश्रव निरोध व तप का पूर्व कृतकर्म क्षय का फल कहा.यावत् संगति से देवलोकमें 15 देवतापने उत्पन्न होते हैं यह सत्य है, और उसे हम हमारी बुद्धि से नहीं कहते हैं ऐसा कहा. तो अहो ।
वादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भगवन्त को श्रमणोपास