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शब्दार्थ कथा का ल० प्राप्त होते अर्थ जा० श्रद्धा उत्पन्न हुइ जा० यावत् स० उत्पन्न हुवा को० कुतुहल अ० यथा*
अपर्याप्त स० भिक्षा गि ग्रहणकर राराजगृह न नगरसे प० नीकलकर अशीघ्रतारहित से जायावत् सो० शोधते जे० नहीं गु० गुणशील चे० उद्यान जे. जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ते. तहां
जाव समुप्पन्न कोउहल्ले अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ गिण्हइत्ता रायागहाओ नयराओ पडिनिक्खमइ अतुरिय जाव सोहेमाणे जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ एसण मणेसणं आलोएइ, भत्तपाणं पडिदंसेइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी एव खलु भंते ! अहं तुन्भेहिं अब्धYण्णाएं समाणे
रायागहे नयरे उच्चनीय मज्झिमाणि कुलाण घरसमुदाणस्स भिक्खायारयाए अडमाणे भावार्थ होने पर यथापर्याप्त [ चाहिये उतना ] आहार ग्रहण करके शीघ्रता व मंदता रहित युगप्रमाण आगे
भूमि देखने राजगृह नगर, की बाहिर गुणशील नामक उद्यान में श्रमण भगवन्त महावीर की पास आये. वहां आकर महावीर स्वामी की पास गमन, आगमन में जो कोई जीव की विरापना हुई होवे उसकी निवृत्यर्थ कायोत्सर्ग करके जो आहार लाये थे उस के शुद्धाशुद्ध ऐसे दोनों को विचार कर भक्त पान बतलाया. बतलाकर श्री श्रमण भगवन्त महावीर को ऐसा कहा अहो भगवन् ! आपकी
विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र -
*38948 दूसरा शतक का पांचवा उद्देशान
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