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दार्थ
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फ० फल त तप से कि० क्या फल त० तब ते. वे थे० स्थविर भ. भगवन्त स० श्रमणोपासक को ए. ऐसा व० बोले सं० संयम से अ० आर्य अ० अनावफल त तप से वो० कर्म छेदन फल तं तैसे जा• यावत् पु० पूर्वतप से पु० पूर्व संयम से क० कर्म से सं० संग से अ. आर्य दे० देव दे० देवलोक, में उ० उत्पन्न होवे स० सत्य ए. यह अर्थ णो नहीं आ० आत्मभाव व. वक्तव्यता से वह क० कैसे ए. यह म० मानाजाये ए. ऐसे ॥ २१ ॥ त० तब भ० भगवान् गो० गौतम ३० इस क.
तएणं ते थेरा भगवंतो समणोवासए एवं वयासी संजमेणं अजो अणण्हय फले, तवे - } वोदाणफले, तं चेव जाव पुव्वतवेणं, पुव्वसंजमेणं, काम्मयाए, संगियाए अजो! देवा देवलोएसु उववज्जति सच्चेणं एसमटे णो चेवणं आयभाववत्तव्वयाए. से कहमेयं मन्ने एवं ? ॥ २१ ॥ तएणं भगवं गोयमे इमोसे कहाए लट्ठसमाणे जायसवे
सत्र
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
वन्तने उत्तर दिया कि संयम का आश्रव निरोध व तप का पूर्व कृतकों के क्षय का फल है. जब ऐसा है तो तपस्वी व संयमी देव क्यों होते हैं ! पूर्व सो सराग तप.से, पूर्व संयम से, कर्म विकार से व संगति से देवलोक में देव होते हैं यह सत्य है. यह अहंभावबुद्धि से नहीं कहते हैं परंतु परमार्थ से कहते हैं. ऐसा स्थविर का वचन कैसे माननीय होवे ?॥ २१॥ इस तरह नगर में वार्ता सुनकर श्रद्धा व कौतुक उत्पन्न
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