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शब्दार्थ
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बाप पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) मूत्र
जाकर रा. राजगृह न नगर में उ० ऊंच नी नीच म०मध्यम कु०कुल के घ० गृह स० समुद्रानकी भि० भिक्षा के लिये अ• विचरते हैं ॥२०॥ त तब भ भगवान गो गौतम रा०राजगृह न०नगर में जा०यावत ० अ० विचरते ५० बहुत ज० मनुष्यों के स० शब्द नि सुने ए० ऐसे म्ब० निश्चय दे, देवानुप्रिय तुं.
तंगिया न० नगरी की व० बाहिर पु० पुष्पवनी चे० उद्यान में पा० पार्श्वनाथ के संतानिये थे. स्थविर भ० भगवन्त स० श्रपणोपासक इ. इसरूप से वा प्रश्न पु० पूछे सं० संयम से भ० भगवन् कि क्या
रायागहे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता, रायगिहे नयरे उच्चनीयमझिमाई कुलाई परघरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ ॥ २० ॥ तएणं से भगवं गोयमे
रायगिहे नयरे जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुंगि__याए नयरीए बहिया पुप्पवईयाए चेइयाए पासावञ्चिज्जा थेरा भगवंतो समणोवास
एहिं इमाइं एयारूवाई वागरणाइं पुच्छिया संजमेणं भंते ! किं फले, तवे किं फले? नगरी में गये. और वहां ऊंच नीच व मध्यम कुल के घरों में भिक्षाचरी की ॥ २० ॥ उस समय में 3e राजगृह नगर में गोचरी करते भगवन्त गौतम स्वामीने बहुत मनुष्यों से ऐसा मुना कि तुंगिया नगरी के बाहिर पुष्परती नामक उद्यान में श्री पार्श्वनाथ भगवन्त के शिष्यानुशिष्य स्थविर भगवन्त को श्रमणोपासक (श्रावकों) ने ऐसा प्रश्न पूछा कि संयम का क्या फल व तप का क्या फल ? तब स्थविर भग-15।
दसरा शतक का पांचवा उद्देशा