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शब्दार्थ राजगुहा नगरमें उ० ऊंच नी नीच म०मध्यम कु कुल के घ गृहों को भि० भिक्षा के लिये अ० विचरने को..
यथासुखं दे० देवानुपिय मा० मत् प० प्रतिबंध ॥ १९ ॥ त० तब भ० भगवान् गो. गौतम स० श्रमणे। भ० भावन्त म. महावीर से अ. आज्ञामिलते स• श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर की अं० पास से गु०॥ गुगशील चे. उद्यान से प. नीकलकर अ० धीमे से अ० अचपल अ० असंभ्रांत जु० धूसरा प्रमाण ५० मलोचना दि० दृष्टि से पु० आगे रि• जाते सो• शोधते जे. जहां रा ० राजा न. नगर ते. तहां उ०
छ?क्खमण पारणयंसि रायगिहे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई, घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए: अहासुहं देवाणुप्पिया मापडिबंधं ॥ १९ ॥ तएणं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अज्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ गुणासलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमइत्ता
अतुरिय मचवलमसंभंते जुगमंतर पलोषणाए विट्ठीए पुररियं सोहेमाणे २ जेणेव भावार्थ ऊंच, वैश्यादि मध्यम व क्षुद्रा नीच कुल के गृहों में से छठ का पारणाके लिये भिक्षा लाने को मैं
इच्छता है. अहो देवानुप्रिय ! जैसे को तुम सुव होवे वैमा करो विलम्मयत करो ॥ ११॥ इस तरह
भगवन्त की आज्ञा मीलनेते गौतम स्वामी भगवन्त श्री महावीर सामी की पाससे गुणशील नामक उद्यान में 17 से नीकलकर शीघ्रता व मंदता रहित असंभ्रान्त बने हुवे युग प्रमाण आगे जमीन को दृष्टि से देखते राजगृही
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी