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शब्दार्थ पारणा में ५० प्रथम पो० पोरसी में म०स्वाध्याय क करे वी० दूसरी पो पोरसी में झा० ध्यान करे त.4 Ior तीसरी पो० पोरसी में अ० धीमे स अ० अचपल अ० असंभ्रांत मु. मुखवस्त्रिका ५० देखकर भा०० भाजन व वस्त्र प० देखकर भा०भाजन को प० पुंजकर भा. भाजन उ० ग्रहणकर जे. जहां सश्रमण भ०१
३५१ भगवन्त म. महावीर ते. तहां उ• आकर स० श्रमण भ. भगवन्त को 40वंदनकर ण. नमस्कार व० बोले इ० इच्छता हूं भं० भगवन् तु. तुमारी आ.. आज्ञा होवेतो छ. छठ भक्त पा० पारणा में रा. . खमणपारणयसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाए,
तइयाए पोरिसीए अतुरिय मचवल मसंभंते, मुहपोत्तियं पडिलेहेइ पडिलेहेइत्ता, भायणाई है वत्वाइं पडिलेहेइपडिलेहेइत्ता भायणाई पमजइ पमज्जइत्ता, भायणाई उग्गाहेइ उग्गाहे
इत्ताजेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ,उबागच्छइत्ता समणं भगवं महावीरं वं..
दहणमंसइ वंदइत्ता णमंसइत्ता एवं वयासीइच्छामिणं भंते !तुझेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पारणे के दिन प्रथम प्रहर में भगवन्त गौतमने स्वाध्याय की, दुसरे प्रहर में ध्यान किया और तीसरे }og प्रहर में धैर्यता सहित व चपलता रहित मुख रत्रिका का प्रतिलेखन किया, भाजन वस्त्रकी प्रतिलेखना की. फीर भाजन को गोच्छेसे पुंजकर ग्रहण किये और श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी की पास आये महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले अहो भगवन् ! आपकी आज्ञा होवे तो इक्ष्वादि |
488 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 48
488042 इसग शतक का पांचवा उद्देशा
भाव