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शब्दार्थ
अमोलक ऋषिजी
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भी बाहिर ज. अन्यदेश में व विचरने लगे ॥ १७॥ते. उस काल ते उससमय में रा• राजगृह न० नगर
जा. यावत् प० परिषदा प० पीछीगइ ते. उसकाल ते. उससमय में स. श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर का जे. ज्येष्ठ अं. अंतेवासी ई० इन्द्रभाति अ० अनगार जा० यावत् सं० संक्षिप्त वि. विपुल। इते तेजोलेश्या छ० छठ छठ से अ० अंतर रहित त. तपकर्म से सं० संयम से तक तप से अ० आत्मा को भा० भावतेहुवे वि० विचरते थे ॥१८॥ त० तब भ० भगवान् गो० गौतम छ० छठ भक्त का पा०
चेइयाओ पडिनिग्गच्छंति पडिनिग्गच्छइत्ता बहिया जणवय विहारं विहरति ॥ १७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे जाव परिसा पडिगया ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूइणामं अणगारे जाव संवित्तविउलतेउलेस्से छद्रं छट्रेणं आनक्खित्तेणं तवो कम्मेणं
संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ १८ ॥ तएणं से भगवं गोयमे छ?- त वन्त भी तुंगिया नगरी के पुष्पवती उद्यान में से नाकलकर अन्य देशमें विहार करने लगे ॥ १७ ॥ उसमें काल उस समय में राजगृह नामक नगर था. वहाँ श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी आये. परिषदा को भगवन्त ने धर्मोपदेश कहा. धर्मोपदेश सुनकर परिषदा पीछी गई. उस काल उस समय में श्री महावीर स्वामी के ज्येष्ट अंतेवासी विपुल तेजोलेश्याको संक्षिप्त करने वाले इन्द्रभूति नामक अनगार निरंतर छठ छठ (बेले बेले) का तप करते संयम व तप में मग्न होते विचरते थे ॥ १८॥ उप्त समय में छठ
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसारनी *
आमचारी
भावार्थ