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शब्दार्थ
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43 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
संयम से आ० आनंद रक्षित थे० स्थविर व० बोले क० कर्म से का० काण्यप ये स्थविर व०बोले सं. गत से दे. देवलोक में उ० उपजते हैं पु० पूर्वतप से पु० पूर्वसंयम से क. कर्म से सं० संगत से अ. आर्य दे देव दे० देवलोक में उ० उत्पन्न होवे स० सत्य ए. यह अर्थ भा० आत्मभाव व०. बक्तव्यता
तब स० श्रमणोपासक थे० स्थविर भ० भगवन्त से ए. ऐसा वा० प्रश्नोत्तर वा० कहते ह. कम्मियाएं अज्जो : देवा देवलोएस उववज्जति ॥ तत्थणं कासवे नाम थेरे एवं
वयासी संगियाए अज्जो ! देवा देवलोएसु उक्वजति ॥ पुत्व तवेणं, पुव्वंसजमेणं; १ । कम्मियाए, संगियाए, अजो ! देवा देवलोएसु उववजंति. सच्चेणं एसअटे नो चेवणं
आयभाव वत्तव्वयाए ॥ तएणं ते समणोवासया थेरेहिं भगवंतेहिं इमाइं एयारवाई देवलोक में देवताओ होते हैं. ३ आनंदरक्षित नामक स्थविर बोले कि कर्म के विकार से देवलोक में उत्पन होते हैं क्योंकि समस्त कर्म का क्षय नहीं कि । है परंतु थोडे बहुत दोष रहेहुवे हैं. काश्यप, नामक स्थाविर बोले कि संगति से देवलोक में देव होते हैं अर्थात् . मनुष्यादि की संगति से सराग भाव रहने से या द्रव्यादि में सराग भाव रहने से तप संयम के आराधक देवलोक में देवता येते हैं. इस तरह पूर्व तप, पूर्व संयम, कर्म विकार व संगति से देवलोक में संयम व तप करनेवाले देव होते हैं ऐमा जो. 'कहा है वह सत्य है. : हमने हमारा अहंभाव से नहीं कहा है. तब स्थचिर ।
काशक-राजाबहादुर लाला.मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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भावार्थ