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________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ 48 पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र का फल त तब ते० बे स० श्रमणोपासक थे० स्थविर भ० भगवन्त को ए० ऐसा व० बोले ज यदि भं० भगवन् सं० संयम से अ० अनाश्रवफल त० तप से वो० कर्म छेदना फल किं० क्या प० प्रत्येक [अ० आर्य दे० देव दे० देवलोक उ० उत्पन्न होवे त० तहां का कालिक पुत्र अ० अनगार थे० स्थविर ते उन स० श्रमणोपासक को ए० ऐसा व० बोले पु० पूर्व तप से अ० आर्य दे० देव दे० देवलोक { में उ० उत्पन्न होवे त० तहां म० महिल थे० स्थविर स० श्रमणोपासक को ए० ऐसा द० बोले पु० पूर्व ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी जइणं भंते! संजमे अणण्यफले तवे वोदाणफले किंपत्तियं भंते देवा देवलोएस उववज्जंति ? तत्थणं कालिय पुत्तेनाम अनगारे थेरे समणोवासए एवं वयासी पुव्वतवेणं अज्जो देवा देवलोएस उववज्जति ॥ तत्थणं महिलेनामं थेरे ते समणोवासए एवं वयासी पुल्वसंजमेणं अज्जो देवा देव-लोएस उववर्जति ॥ तत्थर्ण आणंदरक्खिए नामं थेरे ते समणोवासए एवं वयासी अलग २ दिया. उन में से कालिक पुत्र नामक अनगारने कहा कि अहो श्रमणोपासको ! * तप से देवता में देवपने उत्पन्न होते हैं २ मेहल नामक स्थविर बोले की पूर्व संयम- सराग संयम से * यहां पूर्व शब्द वीतराग अवस्था की अपेक्षा से लिया है. अर्थात् पूर्व तप सो सरागभाव से तप - करना. क्यों कि वीतराग अवस्था से सराग अवस्था पूर्व होती है इससे उसमें कराया हुवा तप सो पूर्वतप. 434984- दुसरा शतकका पांचा उद्देशा ३४७
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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