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शब्दार्थ
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
(प० नीकलकर ए० इकठे मि० मिले पा० पांव से चलकर तुं० तुंगिया न० नगरी की म० मध्य से नि० नीकलकर जे० जहां पु० पुष्पवती चे उद्यान हो० था ते० तहां उ० आकर थे० स्थविर भ भगवन्त को पं० पांच प्रकार के अ० अभिगम से अ० जाते हैं तं वह ज जैसे स० सचित्त द० द्रव्य वि त्यजकर अ० अचित द० द्रव्य अ० रखकर ए० एक पटका उ० उत्तरासन क० करके च० चक्षुदर्शन से
एहिं एहिं गेहेहिंतो पडिनिक्खमंति पडिनिक्खमइत्ता एगयओ मेलायंति, पायविहार
चाणं तुंगिया नयरी मज्झमज्झेणं निग्गच्छति निग्गच्छत्ता, जेणेत्र पुप्फबई ए नामं चेइए होत्या तेव उवागच्छति, उवागच्छत्ता थेरे भगवंते पंचविणं अभि गणं अभिगच्छति तं जहा सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए, अचित्ताणं दव्वाणं अविसरणयाए, एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं, चक्खुप्फासे अंजलिपगहेणं, {स्थविर भगवंत की समीप आते ही? तांबूलादि सचित्त द्रव्य को अलग करना, २ वस्त्रादि अचित्त द्रव्य को अलग नहीं करना, ३ बीच में नहीं सीला हुवा ऐसा एक वस्त्र का उत्तरासन करना ४ चक्षु दृष्टि में आते ही दोनों हस्त की अंजली करना, और ५ अन्य सब छोडकर मन से साधु स्थविर भगवन्त की तरफ एकत्रता करना ऐसे पांच अभिगम किया. फीर उन स्थविर भगवन्त को तीन आदान प्रदक्षिणा करके तीन प्रकार से
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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