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शब्दार्थ
उनकी पास ग० जावे दे० देवानुप्रिय थे० स्थविर भ० भगवन्त को वं० वंदनकरे ण० नमस्कारकरे जा० यावत् १० पूजे इ० यह भव में प० परभव में जा० यावत् आ० आनुगामिक भ० होगा ति० ऐसा करके अ• अन्योन्यकी अंधान एव्यह अर्थ प० सुनकर जे० जहां स० अपने गे० गृह ते तहां उ० { आकर हा० स्नान कीया क०पीठी लगायी क० कोगले किये पा०तिलक कीया सु० शुद्ध पो० प्रवेश करने योग्य) मं० मांगलीक व वस्त्र प० पहिनकर अ० अल्प म० मूल्यवंत आ० आभरण अ० पहिनकर स०अपने गे०गृह नया जाव गहणयाए तं गच्छामोणं देवाणुपिया थ्रेरे भगवंते वंदामो णमं सामो जात्र पज्जुवासामो । एयण्णे इहभवे परभवे जाव आणुगामियत्ताए भबिस्सइ तिकडु ॥ अण्णमण्णस्स अतिए एयमहं पडिसुणंति पडिणित्ता जेणेव साई गेहाई तेणेव उवागच्छंति उवागच्छइत्ता व्हाया कयंचलिकम्मा कयको उयमंगल पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकिय सरीरा भावार्थना सुनकर अपने गृह गये. वहां जाकर स्नान किया, पीटी प्रमुख का विलेपन किया, अंजली { भरकर पानी के कोगले किये, तिलक मसादिक किये, और राजसभा में प्रवेश करने योग्य शुद्ध वस्त्र ॐ पहिने. फीर अल्प भार व बहुत मूल्यवाले आभरणों से अलंकृत बनकर अपने २ गृह से नीकले, और पाँव से चलते हुवे तुंगिया नगरी के मध्य बजार से होकर जहां पुष्पवती नामक उद्यान था वहां आये.
40380 पंचङ्ग हिवचपण्णाति ( भगवती ) सूत्र +48
43+4 दूसरा शतकका पांचवा उद्देशा +4
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