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शब्दार्थ पार्श्वनाथ के संतानिये थे० स्थविर भं. भगवन्त जा. जातिवत जा. यावत् अ० यथाप्रतिरूप उ० 14 अनुज्ञा ओ० लेकर सं० संयम से ततप से अ आत्मा को भा. भावते हुवे वि०विचरते हैं म० महाफल
दे० देवानुपिय त थारूप थे० स्थविर भ. 'भगवन्त के ना० नाम गो० गोत्र को स० सुनने से किं० क्या अ० अभिगमन ६० वंदन ण. नमस्कार प० पूछना प. पूजते जा. यावत् ग० ग्रहण करते २०
सहावित्ता एवं वयासी एवं खल देवाणुप्पिया। पासावच्चजा थेरा भगवंतो जाति 1 संपण्णा जाव अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणाके विहरंति. तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्त
विसवणयाए किभंगपुण अभिगमण वंदण नमसण पडिपुच्छण पज्जुवास
वार्तालाप सुनकर बहुत आनंदित हुए. और परस्पर ऐसा बोलनेलगे कि अहो देवानुप्रिय ! जातिसंपन्न यावत् भावार्थ
यथाप्रतिरूप श्री पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्यानुशिष्य श्री स्थविर भगवन्त पुष्पावती उद्यान में आज्ञा मांगकर
संयम व तपसे आत्माको भावते हुवे विचर रहे हैं. ऐसे तथारूप स्थविर भगवन्त का नाम गोत्र सुनने से ही जमहा फल होता है तो फीर अभिगमन, वंदन, नमस्कार, प्रतिपृच्छा, पर्युपासना यावत् अर्थादिक का ग्रहण
करने का तो कहना ही क्या? इसलिये अहो देवानुप्रिय! अपन वहां जावे और स्थविर भगवन्तको वंदना नम-ई | स्कार यावत् पर्युपासना करे. यही इस भव व परभव में अनुगामीक होगा. ऐसा परस्पर वार्तालाप
अमोलक ऋषीजी अनुवादक-गालब्रह्मचारी मुनि श्री
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रसादजी*