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शब्दाथा
यथा आ० अनुक्रम से च विचरते गा० ग्रामानुपाम ६० जाते सु० सुखमे वि०विचरते जे. जहाँ तुं०१ तंगियानगरी जे. जहां पु. पुष्पवती चे. उद्यान ते. तहां उ० आकर अ० यथाप्रतिरूप उ० अनग्रह
ओ० ग्रहण कर सं० संयम से त० तप से अ० आत्मा को भा०भावतेहुवे वि. विचरते हैं ॥१॥ ततब मुं०१४ #तुंगिया न० नगरी में सिं० सिंघाडे जैसे तिः तीनरस्ता च० चार रस्ता च० बहुत म. राजमार्ग में जा
यावत् ए० एकदिशा तरफ णिक जाते हैं. १४ ॥ त० तब ते. घे स० श्रमणोपासक इ० इसक० कथा ल० माप्त होते ह० हृष्ट तु० तुष्ट जा. यावत् स० बोलाकर ए. ऐसे व० बोले दे. देवानुप्रिय पा.
चेइए, तेणेव उवागच्छंति उवागच्छइत्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिहित्ता संजमेणं. तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ १३ ॥ तएणं तुंगियाए नयरीए सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरच उम्मुहमहापहपहेतु जाव एगदिसाभिमुहा णिज्जायंति, ॥ १४ ॥
तएणं ते समणोवासया इमीसे कहाए लडट्ठा समाणा हट्ट तुट्ठा जाब सद्दावति यथाक्रम से ग्रामानुग्राम मुखपूर्वक विचरते तुगिया नगरी के पुष्पवती उद्यान में आये. वहां आकर यथा-30 IM योग्य अबह याचकर संयम व तप से आत्मा को भावते हुवे विचरते थे ॥ १३ ॥ तब सिंघाडे के आका-3Y
वाले रस्ते में, तीन रस्ता मिले वैसे स्थान में, चौक, बहुत रस्ते मीले वैसे स्थान व राजमार्ग में उन स्थविर भगवन्त के दर्शन कालिये एक ही दिशा में बहुत लोक जा रहे थे ॥ १४ ॥ तब वे श्रमणोपासक ऐसा।।
पंचमाङ्ग विवाह पण्णात (भगवती) सूत्र 428
४४०३-०४ दूसरा शतक का पांचवा उद्देशा