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अमोलक ऋर्षनी
शब्दाथाणा . ज्ञानवम्त ६० दर्शनषन्त प. चारित्रवन्त ल• लज्जा ला० लाघववन्त जो शरीर मा युक्त।
ते तेजस्वी ५० वर्चस्वी ज० यशस्वी जि. जिता है क्रोध जि० जिता है मान मा० माया लो. कोम। नि. निद्रा ई० इन्द्रिय प० परिषह जी• जीवित आ० वच्छिा म मरण भ. भय सो. शोकसे वि० रहित ब० बहु श्रुत ब० बहुत परिवार वाले पं० पांच अ० अनगार स० शत स. साथ सं० रहेहुवे अ.
दसणसंपण्णा, चरित्तसंपण्णा, लज्जा लाघव संपण्णा, ओयंसी तेयंसी, पचंसी जसंसी; .
जियकोहा, जियमाणा, जियमाया, जियलोभा, जियानद्दा, जियइंदिया, जियपरीo सहा, जीवियासा मरण भय सोक विप्पमुका, बहुस्सुया, बहुपरिवारा, lal
पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं संपरिबुडा अहाणुपुल्विं चरमाणा, गामाणुगाम हैदूइजमाणा, सुहं सुहेणं विहरमाणा. जेणेव. तुंगियानयरी जेणेव पुष्फबईए भावार्थ विनय सम्पन्न, मतिज्ञानादि ज्ञान सहित, सम्यक्त्व सहित, सामायिकादि चारित्र सहित, लौकिक लोकोत्तर
लज्जा महित, द्रव्य से उपधि व भाव से सर्व था लयतावाले, ओजस्वी, तेजस्वी, वचन की विशिष्टता युक्त सो वर्चस्त्री, यशस्वी, क्रोध, मान, माया व लोभ को जीतनेवाले, निद्रा, इन्द्रिय, परिषह को जीतनेवाले,
जीवित, मरण, भय व शोक से मुक्त, बहुत श्रुत के धारक और चारों तीर्थरूप बहुत 15 परिवारवाले श्री पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्यानाशेष्य स्थविर भगवंत पांचसो साधु के परिवार सहित
* प्रकाधक-समावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
अनुवादक-बालब्रह्मचारी