________________
शब्दार्थ
भावार्थ
अर्थ ग० ग्रहण किया है अर्थ पु० पूछा है अर्थ अ० जाना है अर्थ कि० विशेष जाना है अ० अर्थ अ० हड्डी मि० भिंज पे० प्रेमानुरक्त अ० यह आ आयुष्यमान नि० निद्र्य पा० प्रवचन. अ० अर्थ प० {परमार्थ से० शेष अ० अनर्थ उ० अच्छा फा० स्फटिक जैसे अ० खुला दु० द्वार चि० प्रसन्न ॐ अतः {पुर प० परगृह प० प्रवेश ब० बहुत सी० शीलव्रत गु० गुन वे० वेरमण ५० प्रत्याख्यान पो० पोषध पंप[वास से चा० चतुर्दशी अः अष्टमी को स० अमावास्या पु० पूर्णीमा को पं० प्रतिपूर्ण पी० पोषध सं० से अट्टे ॥ ऊसियफलिहा अवगुयदुवारा चियत्तंते उरपरघरप्पवेसा, बहूहि सीय गुण वेरमण पञ्चक्खाण पोसहोवबासेहिं चाउदसमुद्दि पुण्णमासिणीसु पंडिपुण्णं पोसहं सम्ममणुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएसणिजेणं असणपाण पूछकर निर्णय किया था, निर्णय वाले अर्थ को सम्यक् प्रकार से धार रखा था, निग्रंय प्रवचन में उन की हड्डी व हड्डी की मिंजिओ प्रेमानुराग से रक्त बनी हुई थी. जब किसी साथ वार्तालाप करने का प्रसंग {आता तब ऐसा ही कहते कि अहो आयुष्यमन्तो ! यह निग्रंथ के प्रवचन मोक्ष साधन का मार्ग है. वही अर्थ रूप है, परमार्थ रूप है, परमादरणीय है. इन सित्राय अन्य धन, पुत्रादि, वैसे ही कुवचनादि अनर्थ हैं, मोक्ष के बाधक हैं. उन श्रावकों के हृदय स्फटिक रत्न की समान निर्मल थे, उन
के गृह के द्वार दान
के लिये सदैव खुले रहते थे, प्रीति करनेवाले अंतःपुर व परगृह में प्रवेश करते अप्रतीति के पात्र नहीं
अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
#कुश राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी
३३०