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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
वाले दि० बलवन्त वि。 विस्तीर्ण वि० बहुन भ० भवनं स शयन आ० आसन जा० थान वा वाहन) युक्त व बहुत ध० धन ब० बहुत जा० सुवर्ण २० रूपा आ० आयोग पं० प्रयोग सं युक्त ि उच्छिष्ट वि० बहुत भ० आहारपानी ब० बहुत दा० दासी दा० दास गो० गौ म० महिषी ग बकरें प बहुत व० बहुत ज० मनुष्य से अर्थ अपराजित अ० जाने हुये जी० जीवाजीव उ० ओलखे पु० पुन्य पा० विपुल भवण सयणासण जाण वाहणाइण्णा, बहुधण बहुजायरूवरयया, आओगप ओगसंपत्ता विच्छड्डियावउल भक्त पाणा, बहुदासीदास गो महिसगवेलगप्पभूया, बहु जणस्स अपरिभूया, अभिगयजीवाजीवा, उबलद्वपुण्णपात्रा, आसव संवर निज्जर किरियाहिगरण बंधपमोक्ख कुसला ॥ असहेज्ज देवासुर नाग सुवण्ण आसन, यान, सुवर्ण व वाहन से व्याप्त; वैसे बहुत धन सुवर्ण चांदी व आयोग प्रयोगसे संयुक्त थे जिनकी भोजन {शालामें इतना आहार निपजता था कि जिस को भोग कर पीछे जो बढना था उसमें से बहुत लोगोंकी आजीविका चलती थी, उन को बहुत दास दासी, गाय बैल, माहपी, गाडर वगैरह का संग्रह था. बहुत से लोगों की पास नहीं थी. यह द्रव्य ऋद्धि का कथन किया. अब भाव ऋद्धि का कथन चलता है. जीव अजीव को जानने वाले थे.
उनकी पास इतनी ऋद्धिथी कि इतनी ऋद्धि
१ लोगों को व्याज से देना २ व्यापार
लगाना.
4 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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